CHUPPI #childabuse #metoo
**** चुप्पी ****
>>>> बचपन के वो दिन थे प्यारे, <<<<<
>>>>> दोस्त मेरे सोनू-रिंकी-टिंकी इतने सारे। <<<<<
>>>>>> दिनभर घर मे खेलना और कूदना, <<<<<<
>>>>>> बस यहीं दो काम हमारे। <<<<<<
>>>> आखिर लाडली थी मैं उस घर की, <<<<
>>>> तो कोई भला हमें क्यों फटकारे? <<<<
>>>>> हर हाथों से मैं गुजरी, <<<<<
>>>> हर गोद मुझे पुकारे । <<<<
>>>>>>> आखिर लाडली थी मैं उस घर की, <<<<<<<
>>>>>> तो कोई भला क्यों न दुलारे? <<<<<<
>>>> इधर-उधर दौड़ती रही उस मासूम मन के सहारे। <<<<
------- पर एक रोज हत्या कर दी गई उस मासूम मन की। -------
>>>> क़ातिल पराया नहीं अपना था, <<<<
> वो गोद जिसपर मैं कभी खेली आज एक भयानक सपना था। <
>>>> मेरे विश्वास की डोर कच्ची थी तो टूट गई। <<<<
>>>> पर मैं तो सिर्फ आठ साल की बच्ची थी, <<<<
>>>>> फिर भी मेरी मां मुझसे क्यों रूठ गई। <<<<<
××××× कब्र थी उसकी पर दफन मैं हो गया गई ×××××
------ सालों बाद फिरसे लोटी हूं उस कब्रिस्तान में देखने एक और मासूमियत को दफन होते।
सुना है क़ातिल वहीं है जिसके होसलो को मेरी ख़ामोशी ने पाला पोसा है। ------
•• अब सोचती हूं, । ••
•• अब सोचती हूं, । ••
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